सब्र और शुक्र

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इंसान की ज़िंदगी में सुख और दुख का आना जाना उसी तरह से लगा रहता है जैसे दिन के बाद रात और रात के बाद दिन। रात चाहे जितनी लंबी और काली क्यों न हो उसका अंत एक पुरनूर सवेरे के साथ ज़रूर होता है। इसी तरह जिंदगी में आने वाली बड़ी से बड़ी मुसीबत का खात्मा एक न एक दिन ज़रूर होता है। अब इस मुसीबत की घड़ी को काटना इतना आसान नहीं है, इसके लिए बहुत बड़े हौसले और सब्र की ज़रुरत है। अक्सर लोग ऐसे हालात में टूट जाते हैं। कुछ लोग तो अपनी जिंदगी से ही बेज़ार हो जाते हैं और आत्महत्या तक कर लेते हैं। इंसान को मुसीबत में पूरे हिम्मत के साथ हालात का डट कर सामना करना चाहिए।
जहाँ हैं वहाँ से धीरे धीरे-धीरे ही सही आगे बढ़ते रहिए जैसे धुन्ध में फंसा मुसाफिर फूँक -फूँक कर कदम बढ़ाता है और जैसे-जैसे आगे बढ़ता जाता है रास्ता दिखता जाता है। मुसीबत की घड़ी में सब्र के लिए अपने रब पर भरोसा करना बहुत ज़रूरी है। जिस मालिक ने पैदा किया है और यहाँ तक पहुँचाया है वही इस मुसीबत से निकालेगा। रिसर्च ये बताता है कि जो लोग ज्य़ादा धार्मिक होते हैं उनके आत्महत्या करने की प्रतिशत बहुत कम है।
दूसरी तरफ, अगर इंसान के हालात अच्छे हों, ज़िंदगी में सब कुछ अच्छा चल रहा हो तो अपने रब का खूब शुक्र अदा करने की ज़रुरत है। उड़ान चाहे जितनी ऊँची क्यों न हो ज़मीन से रिश्ता बरक़रार रहना चाहिए। जब हम अपने रब का शुक्र अदा करते हैं तो वह हमारी नेमतों को कई गुना बढ़ा देता है। जब हालात बुलंदी की तरफ हो तो इंसान को ज्य़ादा आजिज़ (Humble) होने की ज़रूरत है। अकड़ कर और  तकब्बुर  के साथ ज़िंदगी गुज़ारने से रब नाराज़ होता औए नेमतों से महरूम कर देता है। जब खुशहाली हो तो ज्य़ादा से ज्य़ादा लोगों के काम आया जाए, लोगों का दुख दर्द बाँटा जाए और  दुआएँ ली जाए। ये सारी वो खूबियाँ हैं जो हमारी नेमतो को बढ़ाने का सबब बनती हैं।
इसीलिए कहा गया है कि- मुसीबत में सब्र और खुशहाली में शुक्र बेहतरीन अमल है। 

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